नेहरू कांग्रेस परिवार के केवल चार ,
बाकी सब चाटुकार।
शामिल हैं इन चाटुकारों में आजकल के कुछ पत्रकार भी जो एक प्याला चाय के पीछे कुछ भी लिख और दिखा सकते हैं।
एक दिल्ली से प्रकाशित अखबार 'आज समाज' जैसा कुछ तो नाम है उसका राहुल बाबा की ,मोदी जी की विभिन्न मुद्राओं में तस्वीर छाप कर मानो टिपण्णी सी करता है :मोदी घबराये हुए हैं ,कई मूर्खमणि लिखते हैं "बीजेपी घबरा गई होगी राहुल गांधी का लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण सुनकर।" उनका अतिरिक्त आत्मविश्वास देखकर।
ये पत्रकार किस्म के चंद लोग बतलाएं क्या नेहरू कांग्रेस परिवार के कुछ सदस्यों को संसद में आँख मारने का विशेष अधिकार प्राप्त है। भले 'नैन मटक्का' नेहरू वंश का विशिष्ठ हुनर रहा हो संसद की अपनी गरिमा होती है। क्या इस कांग्रेसी राजकुमार ने उसका अतिक्रमण नहीं किया है।इनका ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया से रिश्ता जो भी हो हमें उससे कुछ लेना देना नहीं है ,लेकिन आँख मारना एक वैयक्तिक अभिव्यक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए होती है न की सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए।
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी के नुक्कड़छाप भाषण के बाद जो हुआ ,वह लोकतंत्र को कलंकित करने वाला है। यह तो हमें प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करना चाहिए कि उन्होंने प्रधानमन्त्री पद के रुतबे को झुकने नहीं दिया ,अन्यथा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो पूरी कोशिश की थी की उन्हें इशारे से सीट से उठाकर देश को यह सन्देश दे कि प्रधानमन्त्री कोई भी बन जाए ,आदेश तो गांधी परिवार का ही चलेगा। लोकतंत्र के चुने हुए प्रधानमन्त्री ने राजतंत्र के अहंकारी युवराज को झुका दिया।
झूठ के आधार पर गढ़े हुए अपने भाषण के बाद राहुल गांधी नरेंद्र मोदी की ओर बढ़े ,इसे सभी ने लोकसभा चैनल एवं इतर चैनलों पर देखा। लेकिन जनता और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने एक बार नोट नहीं किया , या फिर जानबूझकर उसकी उपेक्षा की। वह एक क्षण था ,जिसने साफ़ -साफ़ लोकतंत्र और राजतंत्र की मानसिकता के अंतर को स्पष्ट कर दिया।
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के पास पहुंचकर राहुल गांधी ने बार -बार हाथ से इशारा कर उन्हें अपनी सीट से उठने को कहा। एक नहीं ,दो नहीं ,तीन बार उन्होंने हाथ दिखाकर प्रधानमन्त्री को अपनी सीट से उठने को कहा। आश्चर्य कि किसी ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया ?प्रधानमन्त्री पद इस लोकतंत्र का सबसे बड़ा पद है। राजसत्ता की मानसिकता वाला कोई गांधी इसका अपमान नहीं कर सकता है। पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को जिस तरह से सोनिया -राहुल उठ -बैठ कराते थे ,वही कोशिश राहुल गाँधी ने नरेंद्र मोदी से कराना चाहा ,लेकिन यह नरेंद्र मोदी हैं जिन्होंने सदन में प्रवेश करने पर उसे लोकतंत्र का मंदिर कहा था ,उसकी चौखट को चूमा था।
प्रधानमन्त्री मोदी ने भी इशारा किया कि किसलिए उठूँ ?और क्यों उठूँ ?मोदी के चेहरे पर उस वक्त की कठोरता नोट करने वाली थी और वह कठोरता प्रधान - मंत्री के पद की गरिमा को बनाये रखने के लिए उत्पन्न हुई थी। राहुल को समझ में आ गया कि यह व्यक्ति मनमोहन सिंह नहीं है जो उसके कहने पर किसी 'नट ' की तरह नाँचे। थक -हार कर राहुल गांधी झुका और जबरदस्ती पीएम मोदी के गले पड़ गया। इसके बाद फिर वह अहंकार पीछे मुड़ के चलने लगा। गले मिलना उसे कहते हैं ,जिसमें सदाशयता हो उसे नहीं ,जिसमें अहंकार हो। अहंकार से गले मिलने को गले पड़ना कहते हैं। राहुल गांधी पीएम मोदी से गले नहीं मिला बल्कि उनके गले पड़ा। मान न मान तू मेरा महमान।
पीएम के गले पड़ के वह मुड़ा और जाने लगा। पीएम मोदी ने उसे आवाज़ देकर बुलाया और सीट पर बैठे -बैठे ही उससे हाथ मिलाया ,मुस्कुराये उसकी पीठ ठोंकी ,उसे शाबाशी दी ! बिल्कुल एक अभिभावक की तरह।
राहुल गांधी पीएम मोदी से गले मिलने नहीं ,बल्कि वह गले पड़ने गया था। उन्हें आदेश देकर अपनी सीट से उठने के लिए कहने गया था। मेरा मानना है नरेंद्र मोदी की जगह खुद भाजपा का भी कोई नेता होता तो नेहरू परिवार के इस अहंकार उदण्ड राजनेता के कहने पर उठ खड़ा हो गया होता !देखा नहीं आपने जब राहुल गांधी पीएम मोदी के पास आये तो पिछली सीटों पर बैठे कितने ही भाजपाई नेता उठकर खड़े हो गए थे ,ताली बजा रहे थे !दरसल यह सब पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर जीत कर आएं हैं ,लेकिन बीमारी तो वही कांग्रेस वाली लगी ,किसी वंश या परिवार की चाकरी की !
इस मामले को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी नोट किया कि राहुल गांधी ने सदन और प्रधानमंत्री की गरिमा का हनन करने का प्रयास किया है। सुमित्रा महाजन ने बाद में सदन में कहा ,"जिस तरह राहुल गांधी प्रधानमन्त्री के पास पहुंचे ,उन्हें उठने को कहा ,वह शोभनीय था।
प्रधानमंत्री अपनी सीट पर बैठे थे। वह कोई नरेंद्र मोदी नहीं है ,बल्कि देश के प्रधानमंत्री है। उस पद की अपनी गरिमा है। इसके बाद उनके पास से जाकर अपनी सीट पर फिर से भाषण देने लगे और आँख मारा ,यह पूरे सदन की गरिमा के खिलाफ था। "
अपने अध्यक्ष की अशोभनीय आचरण को ढंकने के लिए एक गुलाम की भाँती कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा अध्यक्ष के कहे पर आपत्ति दर्ज़ कराना चाहा। इस पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा ,"मैं किसी के किसी को गले मिलने से थोड़े न रोक रहीं हूँ। मैं भी एक माँ हूँ। मेरे लिए तो राहुल एक बेटे के समान ही हैं। लेकिन एक माँ के नाते उसकी कमज़ोरी को ठीक करना भी मेरा ही दायित्व है। सदन की गरिमा हम सबको ही बनाये रखनी है। "
इसके उपरान्त गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने थोड़ा दार्शनिक अंदाज़ में राहुल की हरकतों पर कटाक्ष करते करते हुए कहा ," जिसकी आत्मा संशय में घिर जाती है ,उसके अंदर अहंकार पैदा हो जाता है।यही आज सदन में देखने को मिला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,यह लोकतंत्र आपका आभारी है कि आप सीट पर बैठे रहे। यह हमारे वोट का सम्मान है। हमने लोकतंत्र के लिए अपना प्रधानमंत्री चुना है ,कोई कठपुतली नहीं कोई प्रधानमंत्री यदि राजशाही के अहंकार वाले किसी व्यक्ति के लिए अपनी सीट से उठ जाए तो यह न केवल प्रधानमंत्री के सम्मान का और सदन की गरिमा का अपमान होगा ,बल्कि देश की उन सभी जनता का अपमान होगा ,जिसे लोकतंत्र में आस्था है और जिसने अपने प्रधानमंत्री के लिए मतदान किया है। धन्यवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ,एक , अहंकारी उद्द्ण्ड को उसकी औकात दिखाने के लिए। पुन : धन्यवाद।
https://www.google.com/search?q=rahul+blinking+his+eyes+in+lok+sabha+picture&rlz=1CAHPZQ_enUS781IN782&oq=Rahul+&aqs=chrome.1.69i57j69i59l2j69i65j69i61j69i60.4839j0j1&sourceid=chrome&ie=UTF-8&se_es_tkn=swKxyyz
बाकी सब चाटुकार।
शामिल हैं इन चाटुकारों में आजकल के कुछ पत्रकार भी जो एक प्याला चाय के पीछे कुछ भी लिख और दिखा सकते हैं।
एक दिल्ली से प्रकाशित अखबार 'आज समाज' जैसा कुछ तो नाम है उसका राहुल बाबा की ,मोदी जी की विभिन्न मुद्राओं में तस्वीर छाप कर मानो टिपण्णी सी करता है :मोदी घबराये हुए हैं ,कई मूर्खमणि लिखते हैं "बीजेपी घबरा गई होगी राहुल गांधी का लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण सुनकर।" उनका अतिरिक्त आत्मविश्वास देखकर।
ये पत्रकार किस्म के चंद लोग बतलाएं क्या नेहरू कांग्रेस परिवार के कुछ सदस्यों को संसद में आँख मारने का विशेष अधिकार प्राप्त है। भले 'नैन मटक्का' नेहरू वंश का विशिष्ठ हुनर रहा हो संसद की अपनी गरिमा होती है। क्या इस कांग्रेसी राजकुमार ने उसका अतिक्रमण नहीं किया है।इनका ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया से रिश्ता जो भी हो हमें उससे कुछ लेना देना नहीं है ,लेकिन आँख मारना एक वैयक्तिक अभिव्यक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए होती है न की सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए।
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी के नुक्कड़छाप भाषण के बाद जो हुआ ,वह लोकतंत्र को कलंकित करने वाला है। यह तो हमें प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करना चाहिए कि उन्होंने प्रधानमन्त्री पद के रुतबे को झुकने नहीं दिया ,अन्यथा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो पूरी कोशिश की थी की उन्हें इशारे से सीट से उठाकर देश को यह सन्देश दे कि प्रधानमन्त्री कोई भी बन जाए ,आदेश तो गांधी परिवार का ही चलेगा। लोकतंत्र के चुने हुए प्रधानमन्त्री ने राजतंत्र के अहंकारी युवराज को झुका दिया।
झूठ के आधार पर गढ़े हुए अपने भाषण के बाद राहुल गांधी नरेंद्र मोदी की ओर बढ़े ,इसे सभी ने लोकसभा चैनल एवं इतर चैनलों पर देखा। लेकिन जनता और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने एक बार नोट नहीं किया , या फिर जानबूझकर उसकी उपेक्षा की। वह एक क्षण था ,जिसने साफ़ -साफ़ लोकतंत्र और राजतंत्र की मानसिकता के अंतर को स्पष्ट कर दिया।
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के पास पहुंचकर राहुल गांधी ने बार -बार हाथ से इशारा कर उन्हें अपनी सीट से उठने को कहा। एक नहीं ,दो नहीं ,तीन बार उन्होंने हाथ दिखाकर प्रधानमन्त्री को अपनी सीट से उठने को कहा। आश्चर्य कि किसी ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया ?प्रधानमन्त्री पद इस लोकतंत्र का सबसे बड़ा पद है। राजसत्ता की मानसिकता वाला कोई गांधी इसका अपमान नहीं कर सकता है। पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को जिस तरह से सोनिया -राहुल उठ -बैठ कराते थे ,वही कोशिश राहुल गाँधी ने नरेंद्र मोदी से कराना चाहा ,लेकिन यह नरेंद्र मोदी हैं जिन्होंने सदन में प्रवेश करने पर उसे लोकतंत्र का मंदिर कहा था ,उसकी चौखट को चूमा था।
प्रधानमन्त्री मोदी ने भी इशारा किया कि किसलिए उठूँ ?और क्यों उठूँ ?मोदी के चेहरे पर उस वक्त की कठोरता नोट करने वाली थी और वह कठोरता प्रधान - मंत्री के पद की गरिमा को बनाये रखने के लिए उत्पन्न हुई थी। राहुल को समझ में आ गया कि यह व्यक्ति मनमोहन सिंह नहीं है जो उसके कहने पर किसी 'नट ' की तरह नाँचे। थक -हार कर राहुल गांधी झुका और जबरदस्ती पीएम मोदी के गले पड़ गया। इसके बाद फिर वह अहंकार पीछे मुड़ के चलने लगा। गले मिलना उसे कहते हैं ,जिसमें सदाशयता हो उसे नहीं ,जिसमें अहंकार हो। अहंकार से गले मिलने को गले पड़ना कहते हैं। राहुल गांधी पीएम मोदी से गले नहीं मिला बल्कि उनके गले पड़ा। मान न मान तू मेरा महमान।
पीएम के गले पड़ के वह मुड़ा और जाने लगा। पीएम मोदी ने उसे आवाज़ देकर बुलाया और सीट पर बैठे -बैठे ही उससे हाथ मिलाया ,मुस्कुराये उसकी पीठ ठोंकी ,उसे शाबाशी दी ! बिल्कुल एक अभिभावक की तरह।
राहुल गांधी पीएम मोदी से गले मिलने नहीं ,बल्कि वह गले पड़ने गया था। उन्हें आदेश देकर अपनी सीट से उठने के लिए कहने गया था। मेरा मानना है नरेंद्र मोदी की जगह खुद भाजपा का भी कोई नेता होता तो नेहरू परिवार के इस अहंकार उदण्ड राजनेता के कहने पर उठ खड़ा हो गया होता !देखा नहीं आपने जब राहुल गांधी पीएम मोदी के पास आये तो पिछली सीटों पर बैठे कितने ही भाजपाई नेता उठकर खड़े हो गए थे ,ताली बजा रहे थे !दरसल यह सब पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर जीत कर आएं हैं ,लेकिन बीमारी तो वही कांग्रेस वाली लगी ,किसी वंश या परिवार की चाकरी की !
इस मामले को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी नोट किया कि राहुल गांधी ने सदन और प्रधानमंत्री की गरिमा का हनन करने का प्रयास किया है। सुमित्रा महाजन ने बाद में सदन में कहा ,"जिस तरह राहुल गांधी प्रधानमन्त्री के पास पहुंचे ,उन्हें उठने को कहा ,वह शोभनीय था।
प्रधानमंत्री अपनी सीट पर बैठे थे। वह कोई नरेंद्र मोदी नहीं है ,बल्कि देश के प्रधानमंत्री है। उस पद की अपनी गरिमा है। इसके बाद उनके पास से जाकर अपनी सीट पर फिर से भाषण देने लगे और आँख मारा ,यह पूरे सदन की गरिमा के खिलाफ था। "
अपने अध्यक्ष की अशोभनीय आचरण को ढंकने के लिए एक गुलाम की भाँती कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा अध्यक्ष के कहे पर आपत्ति दर्ज़ कराना चाहा। इस पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा ,"मैं किसी के किसी को गले मिलने से थोड़े न रोक रहीं हूँ। मैं भी एक माँ हूँ। मेरे लिए तो राहुल एक बेटे के समान ही हैं। लेकिन एक माँ के नाते उसकी कमज़ोरी को ठीक करना भी मेरा ही दायित्व है। सदन की गरिमा हम सबको ही बनाये रखनी है। "
इसके उपरान्त गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने थोड़ा दार्शनिक अंदाज़ में राहुल की हरकतों पर कटाक्ष करते करते हुए कहा ," जिसकी आत्मा संशय में घिर जाती है ,उसके अंदर अहंकार पैदा हो जाता है।यही आज सदन में देखने को मिला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,यह लोकतंत्र आपका आभारी है कि आप सीट पर बैठे रहे। यह हमारे वोट का सम्मान है। हमने लोकतंत्र के लिए अपना प्रधानमंत्री चुना है ,कोई कठपुतली नहीं कोई प्रधानमंत्री यदि राजशाही के अहंकार वाले किसी व्यक्ति के लिए अपनी सीट से उठ जाए तो यह न केवल प्रधानमंत्री के सम्मान का और सदन की गरिमा का अपमान होगा ,बल्कि देश की उन सभी जनता का अपमान होगा ,जिसे लोकतंत्र में आस्था है और जिसने अपने प्रधानमंत्री के लिए मतदान किया है। धन्यवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ,एक , अहंकारी उद्द्ण्ड को उसकी औकात दिखाने के लिए। पुन : धन्यवाद।
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