शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

कोरोना वायरस को चकमा देने वाली प्रोटीन

कोरोना वायरस को चकमा देने वाली प्रोटीन

 लीसेस्टर विश्वविद्यालय के जैवआण्विकी  साइंसदान इन दिनों एक ऐसी प्रोटीन तैयार कर रहें हैं जो ठीक उन अणुओं की तरह ही होगी जिन्हें सार्स -कोव -२ निशाना बनाता है। दरसल यह विषाणु फेफड़ों को और श्वशन क्षेत्र की कोशिकाओं ,कोशिका समूहों से बने ऊतकों को ही नष्ट करके शरीर के सभी प्रमुख अंगों को निशाने पे ले लेता है।

खासकर इसके निशाने पर ऐस (ACE -2 )नाम के सेल रिसेप्टर जो फेफड़ों की सतह पर मौजूद रहते हैं -आते हैं। यह सारे शरीर के ऐसे अभिग्राहियों को धीरे -धीरे नष्ट कर डालता है।
आणविक स्तर पर ही इसके पूरे जीन नक़्शे जीनोम का अध्ययन करने के बाद ही साइंसदानों ने यह प्रोटीन बनाने का मन बनाया है। आने वाले दो ढ़ाई महीनों में ही इस चकमा देने वाली प्रोटीन के अध्ययन परिक्षण शुरू हो जाएंगे।
ये प्रोटीन जो घुद घुलनशील है  चकमा देकर सार्स - कोव -२ को अपनी ओर  विशेष तौर पर आकर्षित करेगी मोहिनी रूप धरकर रिसेप्टर सेल्स का। वायरस इससे चस्पां होगा और इसमें ही विलीन होकर नष्ट हो जाएगा।

वैकासिक आणविक जीवविज्ञान का यह एक अभिनव एवं अप्रतिम  प्रयोग होगा जहां यह प्रोटीन शरीर के बाकी सेल रिसेप्टरों से ज्यादा आकर्षण का केंद्र बनेगी कोविड -१९ बीमारी फैलाने वाले  वायरस के लिए यह विष्णु -माया से काम नहीं होगी ।

इसमें क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की सहायता से वायरस का चित्र उतारा जाएगा लेकिन वायरस  सेमपिल  पर एल्क्ट्रॉनों की बमबारी ,इलेक्ट्रॉन इराडीयेशन इल्कट्रोन बौछार डालने से पहले सेम्पिल तेज़ी से ठंडा किया जाएगा।

कामयाब रहने पर नैदानिक मुख -पट (मास्क )भी तैयार किये जायेंगे। यह  मास्क कोविड -१९ के लक्षणों के प्रकट होने से पहले ही इसकी शरीर में मौजूदगी का पता लगा लेगा। इससे रोग के असरदार निवारण में बड़ी मदद मिलेगी।

सन्दर्भ -सामिग्री :

https://le.ac.uk/news/2020/april/17-decoy-protein-covid-19

Decoy protein injection could stop COVID-19

 that bind and trap the coronavirus to stop it infecting cells in our bodies are being developed by the University of Leicester.

Using pioneering techniques in molecular evolution, a method used in protein engineering to evolve a protein to optimise its use, the research team led by Professor Nick Brindle at Leicester, and with Dr Julian Sale at the MRC Laboratory of Molecular Biology (LMB), are working on the creation of a new soluble protein that binds to the SARS-CoV-2 virus, thereby preventing it from being able to bind to and infect our cells.
The COVID-19 virus normally infects lungs and tissues by binding to a receptor called ACE2 on the surface of our cells. The decoy mimics these receptors, but it is engineered to be more attractive to the virus, so it will bind to the decoy and not ACE2, preventing the virus from ‘hijacking’ and reproducing within our cells.
Nick Brindle, Professor of Cell Signalling at the University of Leicester’s Departments of Molecular & Cell Biology and Cardiovascular Sciences, said:“This is an innovative approach in the ongoing fight against the SARS-CoV-2 virus. By ‘hijacking’ the receptors on cells in our lungs and other tissues the virus can grow and spread throughout the body and lead to disease.“By creating an attractive decoy protein for the virus to bind to, we are aiming to block the ability of this virus to infect cells and protect the function of the cell surface receptors.
“If this approach is successful, it could have the potential to prevent new cases of this deadly disease across the globe.”The initial set of results will be available in two to three months.To facilitate their research, Professor Brindle’s team is using a technique called Cryo-Electron Microscopy (Cryo-EM), which enables scientists to image whole virus or parts of the virus in a native environment. The biological sample is frozen rapidly and then imaged by targeting a beam of high energy particles called electrons, which have a wavelength much smaller than the biological molecules being imaged.As part of its world-leading efforts to support research into COVID-19 and diagnostic testing, the University of Leicester has been working on a number of research projects including the development of a diagnostic mask that could potentially detect the presence of coronavirus before symptoms appear.In addition, the University has donated thousands of items of PPE from its laboratories and lent diagnostic machinery to both the local NHS Trust and the national diagnostic hub at Milton Keynes.
The killer virus is understood to invade cells by sticking to proteins on the surface, called ACE-2 receptors (pictured in blue).  A team at University of Leicester are working on developing proteins which mimic ACE-2 receptors, tricking the virus into latching on to them
The killer virus is understood to invade cells by sticking to proteins on the surface, called ACE-2 receptors (pictured in blue).  A team at University of Leicester are working on developing proteins which mimic ACE-2 receptors, tricking the virus into latching on to them




    

रविवार, 19 अप्रैल 2020

'We can restore one trillion trees -this will powerfully slow down climate change 'TOI ,April 18,2020,TIMES EVOKE,P10(HINDI )

जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार को निर्णायक रूप से कम कर सकता है पुनर्वनीकरण

'We can restore one trillion trees -this will powerfully slow down climate change 'TOI ,April 18,2020,TIMES EVOKE,P10

एक पेड़ हज़ार नियामत। पेड़ों का उपकार कहाँ तक गिनिए गिनाइयेगा -नामुमकिन है -साफ़ हवा पानी  खाद्य दवा से लेकर जीवन हर ज़रूरियात को पूरा करते हैं वृक्ष। उपजाऊ मिट्टी को बांधे रहकर ऊपरी परतों को ढृढ़ता से रोके रहते हैं तरुवर। हज़ारों हज़ार प्रजातियों (सूक्ष्म जीव ,फफूंदी से लेकर मनुष्य तक )को टेका दिए रहते हैं वृक्ष। ज़मीं मुहैया करवाते हैं सूक्ष्म जीवों को पनपने की।हमारे उपभोग के लिए वृक्ष वायुमंडल से कार्बनडाइऑक्साइड और सूरज की रौशनी लेकर बदले में हमें प्राण वायु ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।

 कार्बन का अभिग्रहण इनके द्वारा लगातार होता रहता है कार्बन के ये बड़े सिंक हैं। जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार को थामने में इनके द्वारा कार्बन कैप्चर  कार्बन का अभिग्रहण बड़ा एहम है।
सहजीवन ,सिम्बिओटिक लिविंग, लिविंग टुगेदर ,आर्ट आफ लिविंग  के मानी सिखलाने में वृक्ष हमारे गुरु हैं वैसे भी ये पृथ्वी  के वरिष्ठ नागरिक हैं जो यहां  पर चालीस करोड़ बरसों से आबाद हैं। हमें इस ग्रह पर आये दस करोड़ बरस ही हुए हैं। सूक्षजीवों फफूंद आदि के साथ इनका परस्पर संवर्धित  जीवन यापन काबिले  तारीफ़ ही नहीं अनुकरणीय भी है। वृक्ष जिस कार्बन का अभिग्रहण वायमंडल से करते हैं उसका बहुलांश मिट्टी  में  दाखिल हो जाता है इसी पर सूक्ष्मजीव बसर करते हैं।जहां फफूंद वृक्षों की जड़ों  जल और अन्य पुष्टिकर तत्व मुहैया करवाते हैं वहीँ वृक्ष शानदार  शुगर (शक्कर )इन्हें प्रतिदान में हासिल करवाते हैं। सूर्य की अपार ऊर्जा उसकी शानदार रौशनी लेकर ये कार्बन का अभिग्रहण हमारे आसपास मौजूद कार्बनडाइआक्साइड से करते हैं    इसी की मदद से पादप  शुगर तैयार करते हैं।

विज्ञानिओं ने पता लगाया है इस समय हमारी पृथ्वी पर तकरीबन तीस ख़राब तरुवर (3 triilion trees on earth as of now )मौजूद हैं। सभ्यता के पींग भरने से पहले यह आंकड़ा इससे दो गुना था। वर्तमान में तकरीबन हर साल दस अरब वृक्ष कम हो रहें हैं एक तरफ ये अमूल्य नुकसानी जैव -विविधता का  सफाया कर रही है तो दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन की वजह भी बन रही है।

नाउम्मीद होने की कोई वजह नहीं है  विज्ञानियों ने पता लगाया है निम्नीकृत हो चुकी भूमि का ऐसा बड़ा इलाका मौजूद है जिस पर दस ख़राब वृक्ष -रोपण मुमकिन है ,जरूरत हमारी पहल की है। इस ज़मीन का खेती के लिए इस्तेमाल नहीं हो रहा है न ही यह बिल्डर्स रीयल्टर्स के काम आ रही है यहां वनों का विकास होने पर वृक्ष सीधे सीधे १०० -२०० गीगा टंस कार्बन वायुमंडल से सोख लेंगे।इससे एक तरफ जैव -विविधता सप्राण होगी दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार भी थमेगी नहीं तो कमतर ज़रूर हो जायेगी। इस शती  के  अंत के कार्बनएमिशन  के लक्ष्य पेरिस समझौते के अनुरूप रहें तभी बात बने।

संयुक्त राष्ट्र ट्रिलियन ट्री केम्पेन एक महायज्ञ है जिसमें अमीर गरीब तमाम देशों को आहुति डालनी चाहिए। सार्स -कोव -२ के दौरान इस दिशा में पहल करने में अब देरी नहीं करनी चाहिए जबकि जीवन की क्षण भंगुरता को उजागर करने में भी वृक्ष किसी कोरोना से पीछे नहीं है हमारे भावजगत को भी आलोड़ित करते हैं पेड़ :

तरुवर बोला पात से सुनो पात एक बात ,
या जग या ही रीत है एक आवत एक जात। 

पत्ता टूटा डार से ले गई पवन उड़ाय ,
अब के बिछड़े कब मिलें दूर पड़ेगे  जाय।
सन्दर्भ -सामिग्री :https://timesofindia.indiatimes.com/the-tree-of-our-lives/articleshow/75211584.cms

प्रस्तुति सर्वथा मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली छावनी -११० ०१०

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बुधवार, 15 अप्रैल 2020

किया कोरोना ने जग सूना , नाक नयन मुख को न छूना

https://guzarish6688.blogspot.com/



 किया कोरोना ने जग सूना ,
नाक नयन मुख को न छूना। 

खांसी छींक अगर जो आय ,
मुख  ढ़कना  है सरल उपाय। 

बार बार दोनों कर धोना ,
देखें फिर क्या करे कोरोना। 

नहीं हाथ प्रिय अभी मिलाना ,
अगर कोरोना दूर भगाना। 

गले लगाओ हुआ पुराना ,
अभिवादन का नया ज़माना। 

हाथ किसी से नहीं मिलाओ ,
सिर्फ नमस्ते करते जाओ।

हाथ किसी से नहीं मिलाना ,
सिर्फ नमस्ते करते जाना। 

मेड इन चाइना तभी हराओ ,
सभी नमस्ते जब अपनाओ।  

सार्स -कोव -दो अगर हराना ,
'सोशल डिस्टेंसिंग अपनाना। 

बिलकुल इससे न घबराना ,
किस्सा है यह वही पुराना। 

खुद में ढूंढों अल्ला भगवन,
मंदिर मस्जिद अब न जाना।  

सिज़दे में हैं काशी काबा ,
मंदिर मस्जिद और भगवाना। 

रचनाकार :सुश्री सरिता भाटिया 'गुज़ारिश '
भाटिया कालिज ,आर -१६९ ,ए -३ ,वाणी विहार ,
उत्तम नगर नै दिल्ली ११० ०५९ 
दूर -ध्वनि :९८१ ८८०२ ४२१ 

प्रेषक एवं सहभावी :वीरेंद्र शर्मा ,पूर्व प्राचर्य , राजकीय स्नातकोत्तर कॉलिज बादली ,१२४ १०५ जिला :(झज्जर) ,
२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स दिल्ली छावनी -११० ०१० 

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

ये इत्तेफाक नहीं है आज हमारा हवा पानी मिट्टी अपनी खोई हुई गुणवत्ता पुन :प्राप्त करने लगें हैं। कोरोना लोकडाउन कोरोना आपातकाल है यह ग्लोबल कोरोना एमरजेंसी है। ग्रेटा थुनबर्ग की तरह चेता रहा है कोरोना। तब्लीगी सोच के लोग इसे समझने को तैयार नहीं हैं। अपनी मौत नहीं कोरोना के हाथों मारे जाएंगे सबके सब। कोरोना हिसाब मांगेगा क़यामत के दिन। हमारी हवस का नतीजा है कोरोना एमरजेंसी

 हमारी हवा, पानी ,मिट्टी स्वस्थ हैं  तो हमारे तमाम पारितंत्र -पारिस्थितिकी और पर्यावरण जीवित हैं। हम अलहदा कहाँ हैं अपने पर्यावरण  और इकोलॉजी  से। प्रकृति ने कुदरती आवास हम सबको दिए हैं। दिक्कत यह है हम  आधुनिक कहे जाने वाले मानुष  एक के बाद एक आवासों को या तो अपनी हवस से उजाड़ रहें हैं या हवा पानी की तरह गंदला रहे हैं। समुंदरों को भी हमने कहाँ छोड़ा है। इसी हवस ने विषाणु जैसे निर्जीव और जीवित के बीच की कड़ी को , जीव -परा- आश्रित रोगकारकों  को घर से बे -घर कर दिया है।विष से बना है विषाणु शब्द।विषपाई शंकर चाहिए इनसे निपटने के लिए। आधुनिक मानव होमो -सैपियन इनके हाथों लगातार मारा जाता रहेगा।   मज़े से ये विषाणु और परजीवी एक होस्ट पर टिके हुए थे।कुदरती जंगलों में वर्षा वनों में।

 हम जंगली जानवरों को भी खाने लगे इग्जॉटिक फ़ूड के नाम पर। चमकादड़ और सर्पों को हम सूप बनाकर पीने  लगे।नतीजा एक के बाद एक विषाणुओं का जानवरों से मनुष्यों में अंतरण है।ज़ूनोटिक ट्रांसफर फ्रॉम एनिमल तो मैन  एक से बढ़कर एक घातक जानलेवा वायरस हमें डसने लगे हैं । कभी कोरोना परिवार के ,  सार्स(सीवीअर एक्यूट रिस्पायरेटरी सिंड्रोम )  और मर्स (मिडिल ईस्ट रिस्पायरेटरी सिंड्रम) बनकर कभी इबोला कभी स्वाइन फ्लू  और कभी एविएशन फ्लू बनकर ।

ठन गई है इन विषाणुओं की हमसे। संकट इनके सामने भी है सर्वाइवल का। कोरोना ने हमें सिखाया है : अब दुनिया को नष्ट करने के लिए तुम्हारा न्यूक्लिअर बटन नहीं हमारा कोरोना बटन चलेगा।

काश हमसे से कुछ तालिबानी कुछ तब्लीगी इसकी असलियत समझे होते। इनकी जेहाद को तमाम आईसिस के सिरफिरों को ,मसूद अज़हरों की सोच वालों को ये चेतवानी है तुम नहीं इस दुनिया का सफाया हम करेंगे कर सकते हैं।सम्भल जाओ वक्त रहते। जियो और जीने दो।

ये इत्तेफाक नहीं है आज हमारा हवा पानी मिट्टी अपनी खोई हुई गुणवत्ता पुन :प्राप्त  करने लगें हैं। कोरोना लोकडाउन कोरोना आपातकाल है यह  ग्लोबल कोरोना   एमरजेंसी है। ग्रेटा थुनबर्ग की तरह चेता रहा है कोरोना। तब्लीगी सोच के लोग इसे समझने को तैयार नहीं हैं। अपनी मौत नहीं कोरोना के हाथों मारे जाएंगे सबके सब। कोरोना हिसाब मांगेगा क़यामत के दिन।
हमारी हवस का नतीजा है कोरोना एमरजेंसी  .



(कोरोना वायरस विश्व स्वास्थ्य संगठन की नज़र से )