बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

Women in Majid : A Quest for Justice

मस्जिद में औरत :इन्साफ की तलाश (ज़िया -उस्स -सलाम की किताब )

मुंह खोलकर कहती है :अल्लाह का इस्लाम ठीक मुल्ला का ग़लत। बकौल इस किताब के कुरआन शरीफ़ (कुरआन मज़ीद )कहीं भी औरत को मस्जिद में नमाज़ अता करने से नहीं रोकती। ना ही तीन मर्तबा 'तलाक़ तलाक़ तलाक़ 'दोहराने से तुरतातलाक की इज़ाज़त देती है। बीवियां  भी  ज्यादा से ज्यादा बा -शर्त चार रखने की इज़ाज़त देती है जबकि चारों को बराबर तवज़्ज़ो व दर्ज़ा हासिल हो।  
मज़ेदार बात ये है की हज़ को जाने से पहले खाविंद  अपनी बेगम या बेटी को साथ ले जाते हैं। और मदीना की उस  मस्जिद  में जो पैगंबर  मौहम्मद (मुहम्मद )के समय से है और जहां जाकर ख़ुद मोहम्मद साहब नमाज़ अता करते थे आज भी वहां अलग -अलग हाल में दोनों एक ही समय नमाज़ अता करते हैं। पूरे पश्चिंम एशिया का  यही रिवाज़ कायम रहा आया है। 

अलावा इसके क़ुरआन शरीफ़ के ज्यादातर टीकाकारों (कलम -खोरों )ने यही लिखा समझाया है। ज़ाहिर है ज्यादातर मुल्लाओं ने जिन्हें अरबी नहीं आती मनमर्ज़ी से औरत  को दबाये रखा है। 
हमारा अपना मानना यह है की इस पर क़ुरआन के इल्मी लोगों में बहस -मुबाहिसा हो ,खुलकर चर्चा हो। ताकि अपील (जनहित याचिका )पर फै  सुनाने से पहले देश की चोटी की कचहरी अपना फ़ैसला लिख  सके। मौलाना वहीदुद्दीन जैसे इल्मी लोग हमारे बीच में रहे आये हैं।सनातन मज़हबी किताबों और कतेब को मानने वाले खुलकर अपनी बात रखें ताकि  क़ुरान की रौशनी पादरियों ,पंडों ,मुल्लाओं तक पहुँच सके। ये कौमी हिमायत के लिए भी वाज़िब है। इस मुल्क की रिहाया इसका एहसान मानेगी। 
जयहिंद ,जयमुल्क़ ,जयक़ुरआन ,जैबाइबिल ,जैगीता ,जयउपनिषद ,जयब्रह्मसूत्र ,जय कौमी भरोसा।
विशेष :क़ुरआन के कुछ नामचीन व्याख्याकार (इल्मी )लोगों में अब्दुल मौदूदी ,इसरार अहमद ,यासिर क़दहि  (Qadhi)नौमान वग़ैरा वग़ैरा दीगर साहिबानों का नाम लिया जा सकता है। 

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