कबीर 'बीजक' जीव धन को बताता है
पांच तत्व के भीतरे गुप्त वस्तु स्थान ,
बिरला मरण कोई पाइये गुरु के शब्द प्रमाण।
जीव (पांच तत्व के पुतले )के अंदर जो चैतन्य साक्षी है , वही संस्कारों का धारक है। माया और मन का बोध कराता है बीजक। जो अंदर है उसे हम बाहर खोजते हैं। आत्मा राम सत्ता है। सारा प्रतीत परिवर्तनशील है। आत्मा राम सत्ता यथार्थ है। मन मायाकृत साक्ष्य है ,मिथ्या है।
जीवन की सार्थकता है 'स्व :' और 'पर ' का बोध। 'स्व : ' तत्व सनातन है। सत्य सदैव सत्य रहता है ,'पर' एक प्रतीति है परिवर्तनशील है।
अंतर् ज्योत गुणवाचक है।
"अंतर् ज्योत शब्द एक नारी ,ताते हुए हरि ब्रह्मा त्रिपुरारी। "
नारी शब्द का अर्थ यहां कल्पना शक्ति है।
अन्तर -ज्योत से ही सारे ज्ञान का विकास हुआ है। जीव के अंदर एक शाश्वत तत्व है वह अंतर्ज्योति है।
कबीर सृष्टि का आरम्भ नहीं मानते हैं।
कबीर के यहां 'ब्रह्म' पहले अग्नि को कहा गया। जो बढ़े (अग्नि की तरह )वह ब्रह्म है।
'रज' से सृष्टि होती है 'सत' से पुष्टि और 'तम' से उसका क्षय होता है। त्रिदेवों की मनुष्य ने कल्पना की है । ये तीनों भी सृष्टि का अंत नहीं जान सके।
ब्रह्मा कर्म के प्रवर्तक हैं ,विष्णुजी भक्ति और शिव ज्ञान अथवा योग के प्रवर्तक मान लिए गए। भक्ति और ज्ञान का विकास होने पर कर्मकांड अपने आप लुप्त हो गया। कर्म काण्ड से ही ब्राह्मण थे। आरम्भ में जो अग्नि के सामने बैठ साधना करता था वही ब्राह्मण कहलाता था।
ब्रह्माजी ब्राह्मणों (कर्मकांडियों )का प्रतिनिधितित्व करते थे। विष्णुजी वैष्णव भक्तों का ,शिव ज्ञानमार्गी हैं ,वेदांती शैव दर्शन,शैवों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
पेट न काहू वेद पढ़ायो
सुनत(सुन्नत ) करात तुर्क नहीं आयो
तुर्क कहतें हैं हम राहे खुदा हैं बाकी राहे जुदा हैं ऐसा है तो माँ के पेट से ही मुसलमान बालक सुन्नत करा के क्यों नहीं आया।
ब्राह्मण का बालक यदि जन्म से ही ब्राह्मण है तो उसे वेदों का जन्मना ज्ञान होना चाहिए था।
ब्राह्मण भी यौनि से ही पैदा हुए हैं किसी और मार्ग से नहीं आये हैं
(जो )जे तू ब्राह्मणी जायो ,आन मार्ग ते क्यों नहीं आयो।
"नारी मोचित गर्भ प्रसूति "
' स्वाँग धरे बहुत ही करतूती '
करतूति यानी कर्म काण्ड 'तुर्क 'और ब्राह्मणों का पैदा होने के बाद हुआ।
माता के गर्भ में 'हम' और 'तुम' एक ही लोहू में रहे मलीनता में रहे। कौन पवित्र कौन अपवित्र ?सब बराबर हैं।
'एक ही जनी जना संसारा '
ब्राह्मण वह होता है जो जितेंद्रीय हो धर्मपरायण हो ,शास्त्रों का स्वाध्याय करता हो ,अंदर बाहर पवित्र हो काम क्रोध को जिसने वश में कर लिया हो।
ब्राह्मण होने का मतलब है आत्मस्थित हो जाना। कबीर ,ईसा ,पैगंबर मुहम्मद ,रविदास ,दयानन्द,सब ब्राह्मण थे।
जो निष्कामी हो जाए वह ब्राह्मण है। जो जितना ज्ञान -विज्ञान सदाचार में आगे बढे वही श्रेष्ठ है।जन्म से कोई श्रेष्ठ नहीं होता।
'भव बालक भग द्वारे आया '
भग भोगी के पुरुष कहाया।
ये पंक्तियाँ कबीर के वैराग्य को प्रकट करतीं हैं।
कबीर के अनुसार वह नकली पुरुष है जो फिर उसी योनि में आसक्त हो जाए।
अवगति की गति काहू न जानी ,
एक जीभ कित काहू बखानी।
'राम नाम जाने बिना भव डूबा (डूब डूब ) संसार '
राम या तो कहते हैं परोक्ष है मन वाणी से परे है। वास्तव में वह राम निज तत्व है जो निज तत्व है वह राम है जो दिल में बैठा है वही करीम है राम है।
वह निज स्वरूप अरेख है अलेख है मन वाणी से परे है ,मन वाणी का प्रकाशक है।उसे समझो तो तुम्हारी सारी भ्रान्ति मिट जाए।
पांच तत्व के भीतरे गुप्त वस्तु स्थान ,
बिरला मरण कोई पाइये गुरु के शब्द प्रमाण।
जीव (पांच तत्व के पुतले )के अंदर जो चैतन्य साक्षी है , वही संस्कारों का धारक है। माया और मन का बोध कराता है बीजक। जो अंदर है उसे हम बाहर खोजते हैं। आत्मा राम सत्ता है। सारा प्रतीत परिवर्तनशील है। आत्मा राम सत्ता यथार्थ है। मन मायाकृत साक्ष्य है ,मिथ्या है।
जीवन की सार्थकता है 'स्व :' और 'पर ' का बोध। 'स्व : ' तत्व सनातन है। सत्य सदैव सत्य रहता है ,'पर' एक प्रतीति है परिवर्तनशील है।
अंतर् ज्योत गुणवाचक है।
"अंतर् ज्योत शब्द एक नारी ,ताते हुए हरि ब्रह्मा त्रिपुरारी। "
नारी शब्द का अर्थ यहां कल्पना शक्ति है।
अन्तर -ज्योत से ही सारे ज्ञान का विकास हुआ है। जीव के अंदर एक शाश्वत तत्व है वह अंतर्ज्योति है।
कबीर सृष्टि का आरम्भ नहीं मानते हैं।
कबीर के यहां 'ब्रह्म' पहले अग्नि को कहा गया। जो बढ़े (अग्नि की तरह )वह ब्रह्म है।
'रज' से सृष्टि होती है 'सत' से पुष्टि और 'तम' से उसका क्षय होता है। त्रिदेवों की मनुष्य ने कल्पना की है । ये तीनों भी सृष्टि का अंत नहीं जान सके।
ब्रह्मा कर्म के प्रवर्तक हैं ,विष्णुजी भक्ति और शिव ज्ञान अथवा योग के प्रवर्तक मान लिए गए। भक्ति और ज्ञान का विकास होने पर कर्मकांड अपने आप लुप्त हो गया। कर्म काण्ड से ही ब्राह्मण थे। आरम्भ में जो अग्नि के सामने बैठ साधना करता था वही ब्राह्मण कहलाता था।
ब्रह्माजी ब्राह्मणों (कर्मकांडियों )का प्रतिनिधितित्व करते थे। विष्णुजी वैष्णव भक्तों का ,शिव ज्ञानमार्गी हैं ,वेदांती शैव दर्शन,शैवों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
पेट न काहू वेद पढ़ायो
सुनत(सुन्नत ) करात तुर्क नहीं आयो
तुर्क कहतें हैं हम राहे खुदा हैं बाकी राहे जुदा हैं ऐसा है तो माँ के पेट से ही मुसलमान बालक सुन्नत करा के क्यों नहीं आया।
ब्राह्मण का बालक यदि जन्म से ही ब्राह्मण है तो उसे वेदों का जन्मना ज्ञान होना चाहिए था।
ब्राह्मण भी यौनि से ही पैदा हुए हैं किसी और मार्ग से नहीं आये हैं
(जो )जे तू ब्राह्मणी जायो ,आन मार्ग ते क्यों नहीं आयो।
"नारी मोचित गर्भ प्रसूति "
' स्वाँग धरे बहुत ही करतूती '
करतूति यानी कर्म काण्ड 'तुर्क 'और ब्राह्मणों का पैदा होने के बाद हुआ।
माता के गर्भ में 'हम' और 'तुम' एक ही लोहू में रहे मलीनता में रहे। कौन पवित्र कौन अपवित्र ?सब बराबर हैं।
'एक ही जनी जना संसारा '
ब्राह्मण वह होता है जो जितेंद्रीय हो धर्मपरायण हो ,शास्त्रों का स्वाध्याय करता हो ,अंदर बाहर पवित्र हो काम क्रोध को जिसने वश में कर लिया हो।
ब्राह्मण होने का मतलब है आत्मस्थित हो जाना। कबीर ,ईसा ,पैगंबर मुहम्मद ,रविदास ,दयानन्द,सब ब्राह्मण थे।
जो निष्कामी हो जाए वह ब्राह्मण है। जो जितना ज्ञान -विज्ञान सदाचार में आगे बढे वही श्रेष्ठ है।जन्म से कोई श्रेष्ठ नहीं होता।
'भव बालक भग द्वारे आया '
भग भोगी के पुरुष कहाया।
ये पंक्तियाँ कबीर के वैराग्य को प्रकट करतीं हैं।
कबीर के अनुसार वह नकली पुरुष है जो फिर उसी योनि में आसक्त हो जाए।
अवगति की गति काहू न जानी ,
एक जीभ कित काहू बखानी।
'राम नाम जाने बिना भव डूबा (डूब डूब ) संसार '
राम या तो कहते हैं परोक्ष है मन वाणी से परे है। वास्तव में वह राम निज तत्व है जो निज तत्व है वह राम है जो दिल में बैठा है वही करीम है राम है।
वह निज स्वरूप अरेख है अलेख है मन वाणी से परे है ,मन वाणी का प्रकाशक है।उसे समझो तो तुम्हारी सारी भ्रान्ति मिट जाए।