पुनरपि जनमम् , पुनरपि मरणं पुनरपि जननी ,पुनरपि शयनं।
नुगरा कोई न मिले ,मुझे अवगुण मिलो हज़ार ,
इक नुगरे के शीश पर ,लख -पापन का भार।
(२ )
मूरख का मुख बंब है ,बोले बचन भभँग ,
दारु का मुँह बंद है (चुप्प )है ,गुरु रोगन ब्यापे अंग।
(३)
मैंने अपने जीने की राह को आसाँ कर लिया है ,
कुछ से मुआफ़ी मांग ली है ,कुछ को मुआफ कर दिया है।
काल चिंतन :चिंता ,निराशा ,क्रोध ,लालच और वासना (डिज़ायर )-मृत्यु के ये पांच एजेंट हैं ,जो निरंतर हमें मौत के मुँह में ले जा रहे है।
जन्म -मृत्यु चक्र से मुक्त होना है तो इन पाँचों से बचके निकलिये। वर्ना -
पुनरपि जनमम् , पुनरपि मरणं
पुनरपि जननी ,पुनरपि शयनं।
https://www.youtube.com/watch?v=z7RR73532OQ
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