ऐसे कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है, जिनसे वैसी घटनाओं की किसी अन्य प्रदेश में पुनरावृत्ति न हो जैसी बंगाल में देखने को मिलीं।
West Bengal politics: 'यह बड़ी विडंबना है कि रवींद्रनाथ टैगोर के प्रदेश में, जहां प्रख्यात कवि ने यह कल्पना की थी कि मस्तक हमेशा ऊंचा रहेगा, मस्तिष्क भयमुक्त होगा और जहां समाज टुकड़ों में नहीं विभक्त होगा, उसी राज्य में हजारों लोगों के साथ हत्या, दुष्कर्म, पलायन और धमकी इत्यादि की घटनाएं पिछले कुछ महीने में हुई हों।Ó इन शब्दों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी ने बंगाल में चुनाव बाद की हिंसक घटनाओं की जांच का निष्कर्ष निकाला है। विडंबना यह है कि ममता सरकार इस निष्कर्ष को सिरे से खारिज कर रही हैै। अभी दिल्ली आईं ममता बनर्जी ने चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं को भाजपा का ड्रामा करार दिया। ज्ञात हो कि कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेशानुसार एनएचआरसी ने बंगाल में चुनाव पश्चात हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए एक समिति गठित की थी। समिति की सात टीमोंं ने बंगाल के सभी जनपदों का दौरा कर मामलों की गहराई से पड़ताल की। समिति को कुल 1,979 शिकायतें मिली थीं, जिनमें करीब 15,000 व्यक्ति प्रभावित हुए थे। जांच से जो तथ्य आए हैं, उन्हें किसी भी चश्मे से देखा जाए, वे अत्यंत भयावह हैं। देश में चुनावों के दौरान अनियमितताओं की शिकायत तो हम हमेशा से सुनते आए हैं, परंतु चुनाव परिणाम प्राप्त होने के बाद हिंसा के लिए कुख्यात प्रदेशों में भी शांति हो जाती थी और लोग नई सत्ता को स्वीकार कर लेते थे। किसी ने पक्ष में वोट डाला हो या विपक्ष में, बाद में कोई मारपीट नहीं होती थी। इसके उलट बंगाल में तृणमूल कांग्र्रेस के समर्थकों ने छांट-छांटकर उन लोगों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्रवाई की, जिन्होंने अन्य पार्टी को वोट दिया।
एनएचआरसी की रिपोर्ट के अनुसार 'बहुत बड़ी संख्या में आपराधिक तत्वों, जिन्हें राज्य का संरक्षण प्राप्त था, ने सुनियोजित और व्यापक पैमाने पर हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम दिया।Ó प्रतिशोध की भावना से हिंसा हुई, जिसमें सत्तारूढ़ दल द्वारा मुख्य प्रतिस्पर्धी दल को निशाना बनाया गया, जिससे हजारों लोगों का जनजीवन प्रभावित हुआ और उन्हें भयंकर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि सदस्यों को यह देखकर दुख हुआ कि इन घटनाओं की स्थानीय नेताओं ने निंदा करना तो छोडि़ए, बल्कि मौके पर भी नहीं गए और ऐसे कोई कदम नहीं उठाए, जिससे लोगों का कष्ट कम हो सके। लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। पुलिस के बारे में लिखा है कि वह या तो लापरवाह थी या इन सब कृत्यों में उसकी मिलीभगत थी। फलस्वरूप तृणमूल कांग्र्रेस के अराजक तत्वों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई। संपूर्ण प्रदेश से जो शिकायतें प्राप्त हुई थीं, उनमें अधिकतम कूचबिहार (322) से मिलीं। दूसरे स्थान पर बीरभूम (314) रहा। इन शिकायतों का अगर वर्गीकरण किया जाए तो हत्या की 29 घटनाएं थीं, दुष्कर्म की 12, गंभीर चोट की 391, आगजनी की 940 और धमकी की 562। जांच कमेटी ने पाया कि पुलिस ने बहुत सी शिकायतों को दर्ज नहीं किया और जो शिकायतें दर्ज हुईं, उनमें घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए गिरफ्तारियां बहुत कम हुईं। बहुत से मामलों में सही धाराएं नहीं लगाई गईं और ऐसा प्रतीत हुआ कि अपराध को कम करके दर्ज किया गया। सभी एफआइआर में 9,304 व्यक्तियों के विरुद्ध आरोप लगाए गए। इनमें केवल 1,354 (14 प्रतिशत) की गिरफ्तारी की गई। इन गिरफ्तारियों में 1,086 (80 प्रतिशत) को जमानत मिल गई। कुल मिलाकर आरोपित व्यक्तियों में केवल तीन प्रतिशत जेल में पाए गए, शेष 97 प्रतिशत खुले घूम रहे। समिति ने लिखा है कि यह तंत्र का मखौल उड़ाने जैसा था। प्रख्यात दार्शनिक लॉक के अनुसार जब कानून का राज समाप्त होता है तो अत्याचार की शुरुआत होती है। कुछ ऐसा ही नजारा समिति को बंगाल में दिखा।
देश में पुलिस की आज जो दुर्दशा हो रही है, वह सर्वविदित है। हम अंग्र्रेजों को औपनिवेशिक पुलिस बनाने का दोष देते हैं, पर हमारे नेताओं ने तो उसका राजनीतिकरण और कुछ हद तक आपराधीकरण भी कर दिया है। हाल में हमने देखा कि महाराष्ट्र में वहां का शासकीय तंत्र कैसे पुलिस से व्यापक पैमाने पर धन की उगाही करा रहा था। अब बंगाल का नमूना हमारे सामने है, जहां सत्ताधारी दल ने मतदाताओं के उस वर्ग पर, जिसने उसके विरुद्ध मत दिया था, कहर ढाया।
बंगाल की जो भी आलोचना हो रही है, वह सही है। आवश्यकता अब इसकी है कि कुछ ऐसे ठोस कदम उठाए जाएं, जिनसे वहां जैसी घटनाओं की किसी अन्य प्रदेश में पुनरावृत्ति न हो। सबसे पहले तो संविधान की सातवीं अनुसूची में संशोधन कर पुलिस को समवर्ती सूची में लाया जाए। इससे प्रदेश स्तर पर पुलिस का जो दुरुपयोग हो रहा है, उसे रोकने में सहायता मिलेगी। पुलिस को और आधुनिक बनाने की दिशा में भी केंद्र सरकार ठोस कदम उठा सकेगी। प्रधानमंत्री ने देश को 'स्मार्ट पुलिसÓ यानी एक ऐसी पुलिस जो संवेदनशील, गतिशील, जवाबदेह, त्वरित कार्रवाई में दक्ष और तकनीकी दृष्टि से सक्षम हो, का सपना दिखाया था। आवश्यकता है इस सपने को साकार करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की। सुप्रीम कोर्ट को भी सोचना पड़ेगा कि उसने 2006 में पुलिस सुधार संबंधी जो निर्देश दिए थे, उन्हें धरातल पर लागू करने के लिए और क्या कदम उठाए जाने चाहिए। यह खेद का विषय है उसके निर्देशों की प्रदेश सरकारें खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रही हैं।
बंगाल सरकार भले ही एनएचआरसी की रिपोर्ट को खारिज करे, परंतु इस संवैधानिक संस्था की रिपोर्ट को नकारा नहीं जा सकता। उसकी जांच टीम ने लिखा है कि बंगाल में विधि का शासन के बजाय शासक का विधान है। उसने चेतावनी के रूप में यह भी कहा कि यदि इस चिंताजनक रुझान को रोका नहीं गया तो शायद यह बीमारी, जिसमें सरकारी तंत्र की पूरी ताकत सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति में लगा दी जाती है, अन्य प्रदेशों में भी फैल जाए। यदि ऐसा हुआ तो बंगाल की तरह अन्यत्र भी लोकतंत्र का जनाजा निकल जाएगा। सच्चाई तो यह है कि यह बीमारी कमोबेश कई राज्यों में फैल चुकी है और पानी सिर से ऊपर गुजरने की स्थिति में है।
इसमें सबसे बड़ी सफलता 25 जुलाई, 1978 को इंग्लैंड में लुईस ब्राउन के जन्म के साथ मिली। लुईस ब्राउन, डॉ. पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स व उनकी टीम के वर्षों के प्रयासों के बाद दुनिया में सफल आईवीएफ उपचार के बाद पैदा होने वाली पहली बच्ची थीं। ... इसलिए 25 जुलाई को हर साल विश्व आईवीएफ दिवस के रूप में इसे मनाया जाता है।
पिछले कुछ सालों से इनफर्टिलिटी एक प्रमुख और कॉमन स्वास्थ्य समस्या बनके उभरी है, जिससे बहुत से कपल परेशान होते हैं। फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ अश्वती नायर के मुताबिक आलस भरी लाइफस्टाइल, खराब खानपान, कम शारीरिक गतिविधि और स्ट्रेस बहुत ज्यादा होने से इनफर्टिलिटी की समस्या दम्पत्तियों में बढ़ रही है।
द इंडियन सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन की 2019 की अंतिम रिपोर्ट के अनुसार इनफर्टिलिटी से भारतीय आबादी का लगभग 10 से 14 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित है। शहरी क्षेत्रों में इनफर्टिलिटी की समस्या बहुत ज्यादा है। शहरों में छह में से एक दंपत्ति इनफर्टिलिटी से प्रभावित है।
एक साल तक लगातार गर्भ धारण करने की असफल कोशिश करने के बाद दंपत्ति में इनफर्टिलिटी का पता चलता है। इनफर्टिलिटी को बढ़ाने वाले कुछ फैक्टर्स हमारे हाथ में नहीं होते हैं लेकिन लाइफस्टाइल में बदलाव करने से गर्भधारण करने में मदद मिल सकती है।
भाई / ब्वॉयफ्रेंड / हबी के लिए लाइफस्टाइल और फैशन गिफ्ट आइडिया
हर साल 25th जुलाई को विश्व आईवीएफ दिवस (World IVF Day) मनाया जाता है। इस मौके पर, Nova IVF Fertility के फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ अश्वती नायर यहां बता रहे हैं फर्टिलिटी लेवल बढ़ाने के कुछ तरीके-
तनाव कम करें
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यह देखा गया है कि बहुत ज्यादा तनाव होने से हाइपोथैलेमस ग्रंथि का फंक्शन प्रभावित होता है। यह ग्रंथि अंडाशय को अंडे रिलीज करने के लिए संकेत भेजने वाले हार्मोन को रेगुलेट करने में मुख्य भूमिका निभाती है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि जो महिलाएं ज्यादा तनाव लेती हैं, उन्हें गर्भधारण करने में समस्याओं का सामना ज्यादा करना पड़ता है। चूंकि तनाव होना लाजमी है, इसलिए उन्हें इससे निपटने के लिए स्वस्थ तरीकों को अपनाना होगा।
तम्बाकू और शराब का सेवन न करें
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महिलाओं को अक्सर सेकेंड हैंड स्मोकिंग का शिकार होना पड़ता है, जो स्वास्थ्य के लिए उतना ही हानिकारक है जितना कि एक्टिव स्मोकिंग से होता है। सिगरेट से निकलने वाले विषाक्त पदार्थ प्रजनन अंगों को प्रभावित कर सकते हैं और शुक्राणुओं और अंडों के उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं।
अगर कोई महिला धूम्रपान करती है, तो यह उसके अंडाशय को बूढ़ा कर देता है और उनके अंडों को समय से पहले ही खत्म कर देता है। शराब के भारी और नियमित सेवन से महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन हो सकता है और पुरुषों में शुक्राणुओं को नुकसान हो सकता है। अगर कोई महिला गर्भधारण करने की योजना बना रही है तो उसे शराब का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए।
स्वस्थ खानपान प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मददगार होता है और प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार करता है। यह बदले में स्वस्थ ओव्यूलेशन की संभावना को बढ़ा सकता है। गर्भधारण की संभावना को बढ़ाने के लिए आर्गेनिक फ़ूड (जैविक भोजन) का सेवन और साबुत अनाज तथा ताजे फलों के रस का सेवन करना चाहिए। अपना नाश्ता कभी भी मिस न करें। अगर आपको पीसीओएस है, तो कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम करें।
स्वस्थ वजन मेंटेन रखें
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ज्यादा वजन या काफी कम वजन होना सामान्य ओव्यूलेशन की दर को धीमा कर सकता है। इसलिए अपने बीएमआई पर नजर रखना जरूरी है। नियमित रूप से एक्सरसाइज करें, लेकिन एक्सरसाइज करते समय सावधानी बरतनी चाहिए और अगर आप गर्भधारण करने की योजना बना रही हैं तो डॉक्टर से सलाह लें।
बहुत मेहनत या भार वाली शारीरिक गतिविधि से ओव्यूलेशन रुक सकता है और हार्मोन प्रोजेस्टेरोन के उत्पादन को कम कर सकता है। अगर आप ज्यादा वजन वाले नहीं हैं, तो मध्यम एक्सरसाइज आपके लिए उपयुक्त रहेगी।
अगर आप इनफर्टिलिटी की समस्या से पीड़ित हैं और गर्भावस्था धारण करने पर विचार कर रहे हैं तो आपको अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करने की जरुरत है। हमारी लाइफस्टाइल हमारी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। अपने इनफर्टिलिटी के संभावित कारणों का पता लगाने के लिए अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर से कंसल्टेशन करने की सलाह दी जाती है। वे आपकी प्रजनन क्षमता में सुधार करने और गर्भवती होने की संभावनाओं को बढ़ाने के तरीकों की पहचान करने में आपकी मदद कर सकते है।
हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। अगर आप किसी विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो हमें आपके सवालों के जवाब देने में खुशी होगी। आप हमें अपने सवाल कमेंट बॉक्स में लिख सकती हैं।
On August 6, 1986, India officially entered the brave new world of assisted conception with the widely publicized birth of its first ‘scientifically documented’ IVF baby, Harsha Shah.
Eleven years later, TC Anand Kumar — the pioneering doctor who collaborated with gynaecologist Indira Hinduja to create India’s first test-tube baby — realized that the title he bore belonged to someone else. Kumar had been browsing through some documents he had received at the recently-held Science Congress when he came across the handwritten notes of Dr Subhash Mukherjee.
Meticulous scrutiny and cross-verification made Anand Kumar conclude that the Bengali doctor had preceded him by eight years — India’s first test-tube baby, Kanupriya Agarwal alias Durga, had already been born on October 3, 1978, in Kolkata.
Durga was also the world’s second test-tube baby, born just 67 days after the headline-grabbing birth of Marie Louise Brown in England!
Shocked that the incredible feat had received almost no acknowledgement from India’s scientific community, Anand Kumar took the courageous decision of researching Subhash’s findings and scientifically presenting it to the world, giving the forgotten doctor his due place in medical history.
In his speech at 3rd National Congress on Assisted Reproductive Technology held in Calcutta on February 8, 1997, he made an appeal that Subhash Mukherjee should be credited posthumously for creating India’s first test-tube baby. Two months later, he followed up his appeal with the publication of an article in the journal Current Science, entitled ‘Architect of India’s first test tube baby: Dr Subhash Mukherjee‘.
Thanks to this article and Anand Kumar’s tireless efforts, the Indian scientific world belatedly woke up to monumental nature of the medical achievement.
However, it was only in 2002 that the Indian Council of Medical Research (ICMR) formally recognised the efforts of the forgotten genius. Nonetheless, this pioneering doctor remains little-known among Indians, his path-breaking work unsung and his contribution to modern science overlooked. Its time this changed.
Born on January 16, 1931, in Hazaribagh district of present-day Jharkhand, Subhash was the son of a doctor and studied at the National Medical College in Kolkata after completing his schooling. Fascinated by innovations in gynaecological surgery from his early days as a medical student, he completed his PhD in reproductive physiology from the University of Calcutta before going to Edinburgh University in the UK for a PhD in reproductive endocrinology.
On his return to India in 1967, the dedicated doctor started researching ovulation and spermatogenesis. Soon after, he teamed up with Sunit Mukherji, a cryobiologist, and Saroj Kanti Bhattacharya, a gynaecologist, to work on a method of in-vitro fertilization for a patient (Bela Agarwal) with damaged fallopian tubes.
On October 3, 1978, Subhash and his team announced the birth of the world’s second test tube baby in Calcutta, a baby girl who was nicknamed Durga after the Hindu goddess who embodies the feminine force of creation.
Not only had their attempt at in-vitro fertilisation succeeded, they had also successfully achieved the cryopreservation of an eight-cell embryo — storing it for 53 days, thawing in DMSO reagent and replacing it into the mother’s womb — a full five years before anyone else would do so.
He was also the first to use human menopausal gonadotrophins (hMG) to stimulate ovaries to produce extra eggs. As Anand Kumar later said, Subhash was “far ahead of his time in successfully using an ovarian stimulation protocol before anyone else in the world had thought of doing so.”
So Subhash’s method was different from — and, in the opinion of some, superior to — the one used by the English scientists RG Edwards and Patrick Steptoe for the birth of the world’s first test-tube baby in Oldham just 67 days ago (they did not freeze the embryo and their laparoscope technique of extracting eggs from ovaries was more difficult).
But unlike his counterparts in England, Subhash’s ground-breaking work did not receive acclaim and accolades from his countrymen. Instead, it was greeted with disbelief and disdain from the Indian scientific establishment.
Investigated by an official scientific committee that included no one qualified to evaluate his work, Subhash was vilified for making bogus claims, with the main thread in their argument being the doctor’s lack of documentation.
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This reasoning is however spiritedly refuted by his teammate Sunit Mukherji who says that Subhash had published a paper in the Indian Journal of Cryogenics in 1978, presented his findings at the International Congress on Hormonal Steroids at Delhi the same year and even submitted a report on his work to the state government.
As for why Subhas did not physically produce Durga and her parents as evidence to consolidate his claim. the answer lies in the stigma associated with being childless in 1970s. Fearing social ostracism, the couple did not allow Mukerji to publicize the details of their daughter’s birth.
In an interview, Durga told the Livemint that her conservative parents weren’t prepared for the unsavoury media blitz that came with her birth and retreated from the public glare completely to maintain their privacy.
As such, Subhash continued to face opposition and ridicule. The vindictiveness and insensitivity of the institutionally backed gynaecologists’ lobby also prevented him from presenting his work to the international scientific community.
For instance, he was denied permission to travel to the Primate Research Centre of Japan’s Kyoto University in 1979, where he had been invited to discuss his work. In a final act of ignominy, he was transferred by the authorities to Kolkata’s Regional Institute of Ophthalmology in June 1981.
Humiliated and dispirited, Subhash committed suicide June 19, 1981, at his flat on Kolkata’s Southern Avenue. With this, India lost one of the most brilliant minds the country had ever seen. A decade later, his tragic story became the theme of Ek Doctor ki Maut, a National Award-winning film made by director Tapan Sinha.
However, it would take nearly a quarter of a century for everyone to stop doubting his story.
In October 2003, on the 25th birthday of India’s first test-tube baby, a function was organised by ICMR and Hope Fertility Clinic in Bengaluru in which the scientific community finally gave Subhash Mukherjee his due.
Durga, who was present, said, “I am not a trophy but proud to be the living example of the work of a genius. Justice has been done to my scientific dad.”
In 2007, the story of his life and work were included in the Dictionary of Medical Biography, a book published by Wellcome Trust Centre for the History of Medicine at UCL, London, that lists the names of 1100 scientists from 100 countries around the world who have made path-breaking contributions to medical science.
A year later, during an event celebrating 30 years completion of IVF, Brazilian Medical Society also recognized and honoured Subhash for his incredible achievements. Interestingly, in 2010, RG Edwards was awarded the Nobel Prize in Physiology and Medicine for his work in developing in vitro fertilization (IVF) in humans.
A scientist par excellence, Subhash Mukherjee was the inventor of a modern miracle, one that would change the lives of millions of childless couples in the years to come. In fact, his method is currently the preferred technique of medically assisted reproduction worldwide. Its time we gave this forgotten pioneer the respect and recognition he deserves.
Spermatogenesis, the origin and development of the sperm cells within the male reproductive organs, the testes. The testes are composed of numerous thin tightly coiled tubules known as the seminiferous tubules; the sperm cells are produced within the walls of the tubules.