आपात काल अभी बाकी है ,अतीत जो कभी व्यतीत ही नहीं हुआ -
पूरी झलक दिखाएँगे आपको उल्लेखित लिंक्स (सेतु संग्रह )जो इस टिपण्णी के आखिर में दिए गएँ हैं। आज राजनीति के कई श्यार हुआँ - हुआँ का शोर मचाते खुला घूम रहें हैं कहते चिल्लाते :देश में अब फासीवाद है ,मुसोलिनी इंतजामिया है। जबकि १९७५ में उस महारानी ने ये सोचा न होगा पैंतालीस साल बाद उनका पोता शहज़ादा राहुल सूरत के कोर्ट में लाइन हाज़िर होगा एक आम आदमी की तरह।
पूछा जा सकता है असली प्रजातंत्र कौन सा है वह जो आजकल दिखता है या फिर वह जो २६ जून १९७५ प्रात : आकाशवाणी से इस उद्घोषणा के साथ उन्नीस महीनों तक आपात काल के नाम से जाना गया। तब प्रजातंत्र था जब पैंतालीस साल पहले संविधानेतर सत्ता का केंद्र एक अदद सुलतान बना हुआ था और उसकी थाप पर स्वप्न नगरी के नामचीन कलाकर 'ता थेइ थेइ तत 'कर रहे थे। कई सम्पादक घुटनों के बल रेंग रहे थे एक अदद मल्लिका के आदेश पर।
बेशक कुछ गणेशशंकर विद्यार्थी परम्परा के राष्ट्रवादी पत्रकार प्रतिरोध के स्वर लिए मुखरित हुए थे .
उनमें शरीक थे जनवादी लेखक बाबा नागार्जुन ,भवानी प्रसाद मिश्र ,दुष्यंत कुमार ,कुलदीप नैय्यर आदिक।
पहला बिम्ब -बाबा नागार्जुन (मशहूर जनवादी रचनाकार )
इन्दु जी क्या हुआ आपको
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
सत्ता की मस्ती में
भूल गई बाप को?
इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको?
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
आपकी चाल-ढाल देख- देख लोग हैं दंग
हकूमती नशे का वाह-वाह कैसा चढ़ा रंग
सच-सच बताओ भी
क्या हुआ आपको
यों भला भूल गईं बाप को!
छात्रों के लहू का चस्का लगा आपको
काले चिकने माल का मस्का लगा आपको
किसी ने टोका तो ठस्का लगा आपको
अन्ट-शन्ट बक रही जनून में
शासन का नशा घुला खून में
फूल से भी हल्का
समझ लिया आपने हत्या के पाप को
इन्दु जी, क्या हुआ आपको
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
बचपन में गांधी के पास रहीं
तरुणाई में टैगोर के पास रहीं
अब क्यों उलट दिया ‘संगत’ की छाप को?
क्या हुआ आपको, क्या हुआ आपको
बेटे को याद रखा, भूल गई बाप को
इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी…
रानी महारानी आप
नवाबों की नानी आप
नफाखोर सेठों की अपनी सगी माई आप
काले बाजार की कीचड़ आप, काई आप
सुन रहीं गिन रहीं
गिन रहीं सुन रहीं
सुन रहीं सुन रहीं
गिन रहीं गिन रहीं
हिटलर के घोड़े की एक-एक टाप को
एक-एक टाप को, एक-एक टाप को
सुन रहीं गिन रहीं
एक-एक टाप को
हिटलर के घोड़े की, हिटलर के घोड़े की
एक-एक टाप को…
छात्रों के खून का नशा चढ़ा आपको
यही हुआ आपको
यही हुआ आपको
दूसरा बिम्ब :भवानी दा -
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले / भवानीप्रसाद मिश्र
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले,
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले
उनके ढंग से उड़े,, रुकें, खायें और गायें
वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं
कभी कभी जादू हो जाता दुनिया में
दुनिया भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में
ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गये
इनके नौकर चील, गरुड़ और बाज हो गये.
हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती में
हाथ बांध कर खड़े हो गये सब विनती में
हुक्म हुआ, चातक पंछी रट नहीं लगायें
पिऊ-पिऊ को छोड़े कौए-कौए गायें
बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों को
खाना-पीना मौज उड़ाना छुट्भैयों को
कौओं की ऐसी बन आयी पांचों घी में
बड़े-बड़े मनसूबे आए उनके जी में
उड़ने तक तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले
उड़ने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठाले
आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है
यह दिन कवि का नहीं, चार कौओं का दिन है
उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना
लंबा किस्सा थोड़े में किस तरह सुनाना ?
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.bbc.com/hindi/india-44620564
(२ ) https://hindi.theprint.in/culture/hindi-poet-nagarjun-death-anniversary/35804/
(३)https://www.youtube.com/watch?v=HhD0-gm7PWc
(४ )http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%A4_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A4%BC_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%8F_%E0%A4%A5%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_/_%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0