गुरुवार, 7 नवंबर 2019

"क़ानून बनाम लूट"के रखवाले

"क़ानून बनाम  लूट"के रखवाले

हमारी सम्वेदनात्मक तरफदारी और तदानुभूति शहरी फौज (शहर की हिफाज़त करने वाली पुलिस )के साथ है। अलबत्ता वकीलों का हम सम्मान करते हैं लेकिन लूट में अगुवा उकीलों का नहीं जो सरे आम काले कोट की आड़ में ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसरान को इन दिनों पीटते देखे जा सकते हैं। ये वकीलनुमा -उकील 'वकील' नहीं हैं -उकील हैं। जो अभी मुज़रिम की ओर  दिखाई देते हैं और बोली बढ़ने पर थोड़ी देर बाद ही पीड़ित की ओर । शहर का रक्षक ऐसी छूट नहीं ले सकता। ले भी ले तो बनाये नहीं रह सकता। उकील बनने से पहले आप कहीं से भी तालीम की रसीदें (डिग्री) ले सकते हैं,  मान्य या फ़र्ज़ी यूनिवर्सिटी से और धड़ल्ले से अपनी प्रेक्टिस उका -लत या मुक्का -लात शुरू कर सकते हैं। पैसे की लात ज्यादा वजनी होती है।
पुलिस का सिपाही बनने के लिए फिटनेस होना लाज़मी है ,ट्रेनिंग भी खासी कठोर  भुगतानी पड़ती है। उकाळात में ठेका लिया जाता है केस जितवाने का ,वकालत असल होती है। वकील इंटेलेक्चुअल कहलाते हैं उकील विविधता लिए होता है।पुलिस वाला हो सकता है किसी ख़ास जात -बिरादरी का न भी बन पाता हो उकील इस मामले में विविधता लिए होता है। राजधानी दिल्ली में इन दिनों ऊकिलों की लीला चल रही है। तमाश बीन मत बनिए चने के साथ घुन भी  पिस जाता है।
वकील हमारे लिए  सदैव ही आदर के योग्य रहें हैं ऊकीलों से हमारा क्या किसी का भी पाला न पड़े ,सरोकार भगवान न कराये।    

मंगलवार, 5 नवंबर 2019

"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।"


"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।" तीसहजारी कोर्ट की घटना को मानव निर्मित कहा जाए ,स्वयंचालित ,स्वत : स्फूर्त या हालात की उपज ?बहस हो सकती है इस मुद्दे पर। मान लीजिये नवंबर २ ,२०१९ तीसहजारी घटना-क्रम लापरवाही का परिणाम था ,जिस की सज़ा तुरत -फुरत माननीय उच्चन्यायालय,दिल्ली ने सुना दी। पूछा जा सकता है : नवंबर ४,२०१९  को जो कुछ साकेत की अदालत और कड़कड़ -डूमाअदालत में  घटा वह भी लापरवाही का परिणाम था। क्या इसका संज्ञान भी तुरता तौर पर दिल्ली की उस अदालत ने लिया।
तर्क दिया गया गोली चलाने से पहले पूलिस ने अश्रु गैस के गोले क्यों नहीं दागे ,लाठी चार्ज से पहले वार्निंग क्यों नहीं दी। उत्तर इसका यह भी हो सकता है :क्या जो कुछ घटा नवंबर २ को उसकी किसी को आशंका थी?
यह एक दिन भी कचहरी के और दिनों जैसा ही था। जो कुछ घटा तात्कालिक था ,स्पोटेनिअस था ,चंद-क्षणों की गहमा गहमी और बस सब कुछ अ-प्रत्याशित ?
तर्क दिया गया ,पुलिस धरने पर बैठने के बजाय देश की सबसे बड़ी अदालत में क्यों नहीं गई। हाईकोर्ट के तुरता फैसले के खिलाफ ?
चार नवंबर को अपना आपा खोने वाले  भाडू (भा -डु ,वकील ,प्लीडर ) यदि हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट थे ,तब वह क्यों नहीं अपेक्स कोर्ट गए खाकी -फायरिंग के खिलाफ।
काला -बाना क्या और ज्यादा 'काला' नहीं हुआ ?कौन सी कसर रख छोड़ी भाडूओं  ने ?जेल पुलिस की कई वैन ,जीपें ,मोटरसाइकिलें ,तीसहजारी के जेल परिसर को आग के हवाले करने का खामियाज़ा कौन भरेगा। क्या यह वाहन  और परिसर लावारिस थे ?
मरता क्या न करता। आये दिन खाकी पिट रही है। रईसजादों,मज़हबी इंतहा पसंदों  के हाथों। ट्रेफिक पुलिस को  कुचल कर अमीर -ज़ादे गाड़ी भगा ले जाते है। ये गाड़ियां पेट्रोल से नहीं शराब से चलती हैं। नशे और दौलत के नशे में चूर रहतीं हैं। कौन ज्यादा 'काला' इस पर बहस की जा सकती है।
प्रजातांत्रिक देश में वी.आई.पी  सिक्योरिटी में ज्यादा पुलिस 24x7x365 क्यों बनी रहती है ?उनमें और आर्मी के बडीज़ में क्या फर्क है ?कौन ज्यादा कष्ट में है ?
पुलिस बंदोबस्त के दरमियान पुलिस कर्मियों को एक छोटा पेकिट (पांच रूपये )वाला ग्लूकोज़ का पकड़ा दिया जाता है ,क्या बंदोबस्त के दौरान भूख नहीं लगती।
खाकी बदनाम हुई 'डॉलिंग' तेरे लिए। पूछा जा सकता है ये डॉलिंग कौन है ?दिल्ली की पब्लिक ?